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योग >> विज्ञान की कसौटी पर योग

विज्ञान की कसौटी पर योग

आचार्य बालकृष्ण

प्रकाशक : दिव्य प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :304
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6291
आईएसबीएन :81-89235-61-3

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भारत सहित विश्व के विकासशील देशों में जहाँ अधिकांश लोग एलोपैथी की महंगी दवाओं को आर्थिक तंगी व बदहाली के कारण प्रयोग नहीं कर सकते, योग एक वरदान है। योग समाधान है असाध्य रोगों का यह सत्य आपको प्रस्तुत पुस्तक के अध्ययन से विदित होगा।

Vigyan Ki Kasauti Par Yog-A Hindi Book by Aachrya Balkrishna

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

शरीर, चेतना, मन, - सभी प्रकार का आधार प्राण है। बिना प्राण के जीवन असंभव है। शरीर की प्रत्येक कोशिका अपने आप में हमारा एक प्रतिरूप है, अर्थात् उसमें एक हमशक्ल (Clone) पैदा करने की क्षमता है। प्राण का तात्पर्य श्वसन क्रिया से हैं और इस संदर्भ में प्राण तथा आक्सीजन एक ही हैं। प्राण या आक्सीजन के अणु नैनोटेक्नोलाजी की सबसे छोटी इकाई (Nano) है। प्राणायाम शरीर के प्रत्येक अवयव, सूक्ष्मतम अवयव तक निष्पन्न होने वाले कार्यों को पूरी मात्रा में आक्सीजन देकर, शरीर के आन्तरिक अवयवों को व्यायाम देकर सम्पूर्ण आरोग्य दे सकता है। आक्सीजन युक्त रक्त (Oxygenated Blood), आन्तरिक सूक्ष्म व्यायाम (Internal Exercise) व सकारात्मक जीवन शैली (Positive life style)- यही तो है प्राणायाम।
प्राणायाम शरीर के रक्तकणों को पूरा आक्सीजन देता है तथा शरीर के आन्तरिक अवयवों को वैज्ञानिक रीति से गति प्रदान कर शक्ति का संचार करता है। प्राणायाम द्वारा हम मानसिक स्तर पर श्रद्धा, समर्पण, आस्था, विश्वास, एवं सकारात्मक चिन्तन को जाग्रत कर एक स्वस्थ व चिन्तामुक्त जीवन का प्रारम्भ करते हैं।

आशीर्वचन

 

आधुनिक चिकित्सा का सत्य क्लीनिकल कन्ट्रोल ट्रायल (Controlled Clinical Trial) पर आधारित है। एक अज्ञात में यथार्थ का अन्वेषण एक चुनौती भरा दायित्व है। योग अथवा प्राणायाम से क्या-क्या हो सकता है यह एक क्रमिक अभ्यास व अनुभूति जन्य सत्य है। हमने सत्य या समाधि की अनुभूति के लिए प्रथम, हजारों बाद में लाखों व करोड़ों लोगों पर प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से प्राणायाम के प्रयोग किए। इस पूरी यात्रा के क्रमिक अभ्यास के दौरान कुछ सत्य अनुभूतियाँ प्रकट हुई। योग के इस वैयक्तिक एवं वैश्विक अभ्यास में स्वस्थ लोग भी सम्मिलित थे साथ ही कैंसर, हृदय रोग, रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा अस्थमा व थायराइड़ आदि जटिल रोगों से पीड़ित रोगी भी प्राणायाम में जीवन की तलाश कर रहे थे। सत्य की सशक्त व शाश्वत कसौटी प्रत्यक्ष के अनुसार निर्विवाद पूर्ण यथार्थ है कि मौत के पर्याय बन चुके रोगों से पीड़ित लोगों ने पूर्णत: मुक्त पाई है। इसका प्रमाण कैंसर, हैपेटाइटिस सहित जटिल रोगियों की प्राणायाम करने से पूर्व व अब प्राणायाम करने के बाद के सभी चिकित्सकीय परीक्षण (Clinical Examination),  चिकित्सकीय परीक्षणों के परिणाम व प्रत्यक्ष स्वास्थ्य की प्राप्ति से आज लाखों करोड़ों लोगों की जुबां पर योग का सत्य प्रकट हो रहा है यह कभी भी नहीं दबाया या दफनाया जाने वाला सत्य है। बुद्धिजीवी चिकित्सक वैज्ञानियों के लिए विज्ञान की कसौटी पर योग की एक नई दिशा होगी। चिन्तन की तथा जीवन में निराश हो चुके लोगों के लिए आशा, विश्वास व जीवन की तलाश का एक अवलम्बन।

जीवन में किसी भी बात को आत्मसात करना एक बहुत बड़ा चुनौती भरा काम होता है। भारतीय जनमानस ने सृष्टि के आदिकाल से योग को अपनी जीवनशैली में सम्मिलित किया था। मध्यकाल में योग का अभ्यास शिथिल पड़ गया था, वर्तमान में चल रही योग क्रान्ति से पुन: अतीत की पुनरावृत्ति हुई है और योग के प्रयोग से लाखों-करोड़ों लोग लाभान्वित हो रहे हैं। हम चाहते हैं योग एक जीवन दर्शन बन जाये तथा असाध्य रोगों से पीड़ित लोग इसे अपने समाधान के लिए अपनाएं। साधक इससे समाधि का परम सुख व परमानन्द पाएं, भूले भटकों को राह मिल जाए, स्वयं को अपमानित, उपेक्षित, असुरक्षित व दु:खी करके आत्महत्या के पाप की ओर कदम बढ़ा रहे लोग भी योग के द्वारा आत्मवेत्ता बन जाएं क्योंकि आत्मवेत्ता आत्महन्ता नहीं होता, आत्ममेत्ता दूसरे की हत्या नहीं करता।

 योगी अपराध, भ्रष्टाचार, हिंसा रहित रहकर एक सकारात्मक, सृजनात्मक, गुणात्मक व उत्पादक समाज के निर्माण में सहभागी होता है। योगी आतंकवाद, जातिवाद, प्रान्तवाद व मजहबी उन्माद से हटकर राष्ट्रवाद की राह पर आगे बढ़ता है। योग के माध्यम से आज राष्ट्र एवं विश्व की मानवतावादी, राष्ट्रवादी, पुरुषार्थवादी, अध्यात्मवादी व सत्यवादी सात्विक शक्तियां एकीकत हो रही हैं इससे विश्व शान्ति व विश्व कल्याण का मार्ग स्वत: प्रश्स्त हो रहा है। भारत सहित विश्व के विकासशील देशों में जहाँ अधिकांश लोग एलोपैथी की महंगी दवाओं की आर्थिक तंगी व बदहाली के कारण प्रयोग नहीं कर सकते, योग एक वरदान है। योग समाधान है असाध्य रोगों का यह सत्य आपको प्रस्तुत पुस्तक के अध्ययन से विदित होगा।

 वर्ष 2005-2006 की संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट पर नजर डाले तो आंकड़े बताते हैं कि भारत का एक वर्ष में चार लाख उनासी हजार पाँच सौ बीस करोड़ रुपये (4,79,520) स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च हो रहा है और विश्व बैंक की पृष्ठ न. 11 पर भारत की स्वास्थ्य सेवाओं की रिपोर्ट एक कटु सत्य बयां कर रही है और वह यह कि भारत में मात्र 35 प्रतिशत लोग ही बीमार होने के बाद आवश्यक उपचार ले पाते हैं।

भारत के 65 प्रतिशत लोग अर्थात् लगभग 70 करोड़ लोग बीमार होने के बाद अत्यावश्यक दवा भी नहीं खरीद पाते। यदि भारत के सभी लोग एलौपैथी से उपचार ले सकें तो खर्च तेरह लाख सत्तर हजार सत्तावन करोड़ रुपये (13,70,057) बैठता है और भारत की परम्परागत चिकित्सा विधाओं में योग एवं आयुर्वेद को छोड़कर पूर्णरूपेण अमेरिका की तरह एलौपैथी पर केन्द्रित हो जाएं और भारत की स्वास्थ्य सेवाओं को अमेरिका की तर्ज पर चलाना चाहें तो अमेरिका की तरह भारत का भी चिकित्सा खर्च पाँच हजार दो सौ सतहत्तर (5277) डालर प्रतिवर्ष व्यक्ति आयेगा। स्वास्थ्य सेवाओं पर यदि इसी खर्च के अनुसार भारत के खर्च को आँका जाए तो देश का स्वास्थ्य सेवाओं का खर्च आयेगा सात करोड़ बावन लाख सड़सठ हजार पाँच सौ चौदह करोड़ रुपये (7,52,67,514)। इस भारी भरकम खर्च को हम देश की पूरी जी.डी.पी. लगाकर भी पूरा नहीं कर पायेंगे।


 

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